भजन

भजन
छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे !

छोड़ दे बन्दे झूठे धन्धे, बन जा सच्चा इन्सान रे, मान रे माटी के पुतले मान रे ।
तू इस मिट्टी के ढाँचे पे नाज करता है,   किसी के आह को बिल्कुल नहीं समझता है ।
आज संसार में इंसानियत का नाम नहीं,  यहाॅ पर ऐसे दुर्जनो का कोई काम नहीं ।
आज के इस सन्त से, असन्तजन ही चिढाते हैं, विष्णु-राम-कृष्ण को क्या-क्या न कहा करते  हैं ।
छोड़ झमेला जग का मेला दो दिन का मेहमान रे ,  मान रे माटी के पुतले.... मान रे ।
लोग विज्ञान के चक्कर में रहा करते हैं,  विष्णु-राम-कृष्ण की हँसी उड़ाया करते हैं ।
आज नैतिकता का कोई ख्याल नहीं,  आज अश्लीलता का भी कोई मलाल नहीं ।
आज की नारियाँ नारीत्त्व को ही भूल गयीं, नये श्रृगाँर की रस्सी पकड़ के झूल गयीं ।
छोड़ी सच्चाई पकड़ी बुराई सतियों के अरमान रे ।   मान रे माटी के पुतले मान रे ।
तू आदमी है आदमी से जला करता है, ऐसे इन्सान से भगवान भी उबलता है ।
आज संसार में उसे रहने का अधिकार नहीं,  जिसे परमात्मा से कोई सरोकार नहीं ।
भगवान-खुदा-गाॅड की भक्ति को भूल बैठे हो, अली हनुमान की शक्ति को भूल बैठे हो ।
भूल गया है गीता-रामायण भूला बाइबिल र्कुआन रे ।   मान रे माटी के पुतले मान रे ।
आज उस गर्भ के वादे को भूल बैठे हो,  चन्द दौलत के इशारे पे शान ऐंठे हो ।
तेरा परिवार तेरा साथ न निभायेंगे, बहुत करेंगे तो शैया के साथ जायेंगे ।
रहा जो गर्भ का वादा उसे न बिसराओं, प्राण राहत के लिये प्रभु का भजन गाओ ।
नहीं ठिकाना कब है जाना, समय बड़ा बलवान रे ।  मान रे माटी के पुतले मान रे ।
मेरे दो हाथ रहे नाथ के पूजन के लिये, रहे बेचैन नयन प्रभु के दर्शन के लिये ।
मेरी जिह्ना रहे प्रभु आपके सुमिरन के लिये, सिर झुकता रहे प्रभु आपके चरणों के नीचे,
मेरी भक्ति रहे कायम प्रभु दुहाई हो, यही भक्ति सबके लिये सुखदायी हो ।
हे उपकारी करुणाधारी सबका हो कल्याण रे । मान रे माटी के पुतले मान रे ।
प्रेम से बोलिये-- श्री सदगुरुदेव जी महाराज की .... जय ।     
 ---एक सच्चा भक्त