सन्त महिमा

सन्त महिमा




     सन्त महिमा‘‘सन्त जो वास्तव में अन्तिम ‘सत्य’ के साथ हो, अन्तिम ‘सत्य’ के साथ सदा-सर्वदा ही रह रहा हो-- सन्त वास्तव में वही है । ‘‘वासुदेवं सर्वं इति’’ जिसका सब कुछ भगवान् ही हो । भीतर-बाहर, नीचे-ऊपर, पीछे-आगे--जिस शरीर विशेष का सबकुछ भगवान् ही हो, परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म ही हो, वास्तव में वही ‘सच्चा सन्त’ कहलाने का हकदार है । भगवान् को छोड़कर, परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म को छोड़कर जिसका कुछ भी संसार में हो, वास्तव में वह सन्त की परिभाषा में नहीं आ सकता।’’